ब्राह्मण में ऐसा क्या है कि सारी दुनिया ब्राह्मण के पीछे पड़ी है।इसका उत्तर इस प्रकार है।
रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है कि भगवान श्री राम जी ने श्री परशुराम जी से कहा कि →
"देव एक गुन धनुष हमारे।
नौ गुन परम पुनीत तुम्हारे।।"
हे प्रभु हम क्षत्रिय हैं हमारे पास एक ही गुण अर्थात धनुष ही है आप ब्राह्मण हैं आप में परम पवित्र 9 गुण है-
ब्राह्मण_के_नौ_गुण :-
रिजुः तपस्वी सन्तोषी क्षमाशीलो जितेन्द्रियः।
दाता शूरो दयालुश्च ब्राह्मणो नवभिर्गुणैः।।
● रिजुः = सरल हो
● तपस्वी = तप करनेवाला हो
● संतोषी= मेहनत की कमाई पर सन्तुष्ट रहनेवाला हो
● क्षमाशीलो = क्षमा करनेवाला हो
● जितेन्द्रियः = इन्द्रियों को वश में रखनेवाला हो
● दाता= दान करनेवाला हो
● शूर = बहादुर हो
● दयालुश्च= सब पर दया करनेवाला हो
● ब्रह्मज्ञानी
श्रीमद् भगवत गीता के 18वें अध्याय के 42श्लोक में भी ब्राह्मण के 9गुण इस प्रकार बताए गये हैं-
" शमो दमस्तप: शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च।
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्म कर्म स्वभावजम् ।।"
अर्थात-मन का निग्रह करना ,इंद्रियों को वश में करना,तप( धर्म पालन के लिए कष्ट सहना),शौच( बाहर भीतर से शुद्ध रहना), क्षमा ( दूसरों के अपराध को क्षमा करना), आर्जवम्( शरीर, मन आदि में सरलता रखना, वेद शास्त्र आदि का ज्ञान होना, यज्ञ विधि को अनुभव में लाना और परमात्मा वेद आदि में आस्तिक भाव रखना यह सब ब्राह्मणों के स्वभाविक कर्म हैं।
पूर्व श्लोक में "स्वभावप्रभवैर्गुणै:"कहा इसलिए स्वभावत कर्म बताया है। स्वभाव बनने में जन्म मुख्य है।फिर जन्म के बाद संग मुख्य है।संग स्वाध्याय, अभ्यास आदि के कारण स्वभाव में कर्म गुण बन जाता है।
दैवाधीनं जगत सर्वं , मन्त्रा धीनाश्च देवता:।
ते मंत्रा: ब्राह्मणा धीना: , तस्माद् ब्राह्मण देवता:।।
धिग्बलं क्षत्रिय बलं , ब्रह्म तेजो बलम बलम् ।
एकेन ब्रह्म दण्डेन , सर्व शस्त्राणि हतानि च ।।
इस श्लोक में भी गुण से हारे हैं त्याग तपस्या गायत्री सन्ध्या के बल से और आज लोग उसी को त्यागते जा रहे हैं, और पुजवाने का भाव जबरजस्ती रखे हुए हैं ,
*विप्रो वृक्षस्तस्य मूलं च सन्ध्या।
*वेदा: शाखा धर्मकर्माणि पत्रम् l।*
*तस्मान्मूलं यत्नतो रक्षणीयं।
*छिन्ने मूले नैव शाखा न पत्रम् ll*
भावार्थ -- वेदों का ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मण एक ऐसे वृक्ष के समान हैं जिसका मूल (जड़) दिन के तीन विभागों प्रातः, मध्याह्न और सायं सन्ध्याकाल के समय यह तीन सन्ध्या (गायत्री मन्त्र का जप) करना है, चारों वेद उसकी शाखायें हैं, तथा वैदिक धर्म के आचार विचार का पालन करना उसके पत्तों के समान हैं । अतः प्रत्येक ब्राह्मण का यह कर्तव्य है कि,, इस सन्ध्या रूपी मूल की यत्नपूर्वक रक्षा करें, क्योंकि यदि मूल ही नष्ट हो जायेगा तो न तो शाखायें बचेंगी और न पत्ते ही बचेंगे ।
???? जय श्री परशुराम ????????????????
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