शयन विधान
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सूर्यास्त के प्रथम प्रहर(लगभग 3 घंटे) के बाद ही शयन करना।
सोने की मुद्राऐं:-
उल्टा सोये भोगी,
सीधा सोये योगी,
दांयें सोये रोगी,
बायें सोये निरोगी।
शास्त्रीय विधान भी है।
आयुर्वेद में ‘वामकुक्षि’ की बात आती हैं।
बायीं करवट सोना, स्वास्थ्य के लिये हितकर है।
शरीर विज्ञान के अनुसार चित सोने से, रीढ़ की हड्डी को नुकसान और औधा या ऊल्टा सोने से आँखे बिगडती हैं।
सोते समय कितने गायत्री मंन्त्र/नवकार मंन्त्र गिने जाए-
सूतां सात, उठता आठ- सोते वक्त सात भय को, दूर करने के लिए सात मन्त्र गिनें और उठते वक्त आठ प्रकार की परेशानियों को दूर करने के लिए, आठ मन्त्र गिनें।
सात भय:- इहलोक, परलोक, आदान, अकस्मात, वेदना, मरण,
अश्लोक(भय)।
दिशा घ्यान:- दक्षिण दिशा (South) में पाँव रखकर कभी सोना नहीं चाहिए। इस दिशा में यम और दुष्टदेवों का निवास है। कान में हवा भरती है। मस्तिष्क में रक्त का संचार कम हो जाता है। स्मृति- भ्रंश व असंख्य बीमारियाँ होती है।
यह बात वैज्ञानिकों ने एवं वास्तुविदों ने भी जाहिर की है।
1. पूर्व(E) दिशा में मस्तक रखकर सोने से, विद्या की प्राप्ति होती है।
2. दक्षिण(S) में मस्तक रखकर सोने से, धनलाभ व आरोग्य लाभ होता है।
3. पश्चिम(W) में मस्तक रखकर सोने से, प्रबल चिंता होती है।
4. उत्तर(N) में मस्तक रखकर सोने से, हानि, मृत्युकारक कष्ट होता है।
अन्य धर्मग्रंथों में शयनविधि में और भी बातें सावधानी के तौर पर बताई गई हैं।
शयन की विशेष सावधानियाँ:-
1. मस्तक और पाँव की तरफ दीपक नहीं रखना चाहिये। दीपक बायीं या दायीं ओर, कम से कम5 हाथ दूर होना चाहिये।
2. संध्याकाल में निद्रा नहीं लेनी चाहिए।
3. शय्या पर बैठे-बैठे निद्रा नहीं लेनी चाहिए।
4. द्वार के उंबरे/देहरी/थलेटी/चौखट पर, मस्तक रखकर नींद नहीं लेना चाहिये।
5. ह्रदय पर हाथ रखकर, छत के पाट या बीम के नीचें और पाँव पर पाँव चढ़ाकर, निद्रा नहीं लेना चाहिये।
6. सूर्यास्त के पहले नहीं सोना चाहिए।
7. पाँव की ओर शय्या ऊँची हो तो अशुभ है। केवल चिकित्सकीय उपचार हेतु छूट है।
8. शय्या पर बैठकर, खाना-पीना अशुभ है।
9. सोते-सोते समय नहीं पढना चाहिए।
10. ललाट पर तिलक रखकर सोना अशुभ है इसलिये सोते वक्त तिलक मिटाने को कहा जाता है।
पंडित ओम प्रकाश शर्मा
ज्योतिषाचार्य उज्जैन
वेबसाइट www. ompandit.com
9977742288
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