विवाह { vivah }

March 2, 2017

विवाहदिवस संस्कारजैसे जीवन का प्रारम्भ जन्म से होता है, वैसे ही परिवार का प्रारंभ विवाह से होता है ।। श्रेष्ठ परिवार और उस माध्यम से श्रेष्ठ समाज बनाने का शुभ प्रयोग विवाह संस्कार से प्रारंभ होता है ।। दो शरीर मिलकर एक प्राण होने की साधना इसी दिन से प्रारंभ करते हैं ।। इसलिए विवाह दिवसोत्सव को भी एक श्रेष्ठ पर्व मानकर उस दिन युग ऋषि द्वारा निर्धारित संस्कार का लाभ लेना चाहिए ।।

व्याख्या

जिनके विवाह नहीं हुए उनके संस्कार को सुयोग्य व्यवस्थापकों एवं पुरोहितों द्वारा अत्यन्त प्रभावोत्पादक बनाया जाना चाहिए, पर जिनके हो चुके हैं, उनके सम्बन्ध में ‘हो गया सो हो गया’ कहकर छुटकारा नहीं पाया जा सकता, उनको यह लाभ पुनः मिलना चाहिए ।। औंधे- सीधे ढंग से बेगार भुगतने की भगदड़ में उन्हें जो मिल नहीं पाया है, इसके लिए उत्तम- सरल और उपयोगी तरीका विवाह दिवसोत्सव मनाया जाना ही हो सकता है ।। जिस दिन विवाह हुआ था, हर वर्ष उस दिन एक छोटा उत्सव, समारोह मनाया जाए ।। मित्र परिजन एकत्रित हों, विवाह का पूरा कर्मकाण्ड तो नहीं, पर उनमें प्रयुक्त होने वाली प्रमुख क्रियाएँ पुनः की जाएँ तथा विवाह के कर्तव्य- उत्तरदायित्वों को नये सिरे से पुनः समझाया जाए ।।

हर वर्ष इस प्रकार का व्रत धारण, प्रशिक्षण, संकल्प एवं धर्मानुष्ठान किया जाता रहे, तो उससे दोनों को अपने कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों को पालने- निबाहने की निश्चय ही अधिक प्रेरणा मिलेगी ।। उसी दिन दोनों परस्पर विचार- विनिमय करके अपनी- अपनी भूलों को सुधारने तथा एक दूसरे के अधिक समीप आने के उपाय सुझाने में सफलता प्राप्त कर सकते हैं ।। विवाह दिन की पुरानी आनन्दमयी स्मृति का स्मरण कर पुनः अन्तःकरण को प्रफुल्लित कर सकते हैं ।। इस प्रकार वह सुनहरा दिन एक दिन के लिए हर साल नस- नाड़ियों में उल्लास भरने के लिए आ सकता है और विवाह कर्तव्यों को नये सिरे से निबाहने की प्रेरणा दे सकता है ।।

बन्दूकों के लाइसेन्स हर साल बदलने पड़ते हैं, रेडियो का लाइसेन्स हर वर्ष नया मिलता है ।। मोटरों के लाइसेन्स का भी हर साल नवीनीकरण करना पड़ता है ।। विवाह के कर्तव्यों को ठीक तरह पालने का लेखा- जोखा उपस्थित करने, भूल- चूक को सुधारने और अगले वर्ष सावधानी बरतने के विवाह लाइसेन्स का यदि हर वर्ष नवीनीकरण कराया जाए, तो इससे कुछ हानि नहीं, हर दृष्टि से लाभ ही लाभ है ।। संसार के अन्य देशों में यह उत्सव सर्वत्र मनाये जाते हैं ।। अन्तर इतना ही है कि वे केवल खुशी बढ़ाने के मनोरंजन तक ही उसे सीमित रखते हैं, हमें उसे धर्म प्रेरणा से ओत- प्रोत करने वाले धर्मानुष्ठान की तरह नियोजित करना है ।।
संकोच- अनावश्यक-

इस प्रथा के प्रचलन में एक बड़ी कठिनाई यह है कि हमारे देश में विवाह को, दाम्पत्य जीवन को झिझक- संकोच एवं लज्जा का विषय माना जाने लगा है, उसे लोग छिपाते हैं ।। दूसरों को देखकर स्त्रियाँ अपने पतियों से घूँघट ओढ़ लेती हैं और पति अपनी पत्नी की तरफ से आँखें नीची कर लेते हैं ।। विवाह के अवसर पर वधू बड़े संकोच के साथ डरती- झिझकती कदम उठाकर आती है, यह अनावश्यक संकोचशीलता निरर्थक है ।। भाई- भाइयों की तरह पति- पत्नी भी दो साथी हैं ।। विवाह न तो चोरी है, न पाप ।। दो व्यक्तियों का धर्मपूर्वक द्वैत को अद्वैत में परिणत करने का व्रत- बन्ध ही विवाह अथवा दाम्पत्य संबंध है ।। अवश्य ही अश्लील चेष्टाएँ अथवा भाव भंगिमाएँ खुले रूप से निषिद्ध मानी जानी चाहिए, पर साथ- साथ बैठने- उठने, बात करने की मानवोचित रीति- नीति में अनावश्यक संकोच न बरता जाए, इसमें न तो कोई समझदारी है, न कोई तुक ।। इस बेतुकी को यदि हटा दिया जाए, तो इससे मर्यादा का तनिक भी उल्लंघन नहीं होता ।।

जब अनेक अवसरों पर पति- पत्नी पास- पास बैठ सकते हैं, कोई हवन आदि धर्मकृत्य कर सकते हैं, साथ- साथ तीर्थयात्रा आदि कर सकते हैं, तो विवाह दिवसोत्सव पर किये जाने वाले साधारण से हवन में किसी को क्यों संकोच होना चाहिए ।। गायत्री हवन के साथ- साथ चार- पाँच छोटे- छोटे अन्य (विवाह दिवसोत्सव के) विधि- विधान जुड़े हुए हैं और प्रवचनों का विषय दाम्पत्य जीवन होता है ।। इनके अतिरिक्त और कुछ भी बात तो ऐसी नहीं है, जिसके लिए झिझक एवं संकोच किया जाए, विवाह की चर्चा करने पर जैसे वर- वधू सकुचाते हैं, वैसी ही कुछ झिझक विवाह दिवसोत्सव के अवसर पर दिखाई जाती है ।। इसमें औचित्य तनिक भी नहीं, विचारशील लोगों के लिए इस अकारण की संकोचशीलता को छोड़ने में कुछ अधिक कठिनाई नहीं होनी चाहिए ।।

अनेक प्रगतिशीलता दम्पत्ति अपने विवाह दिवस मनाते हैं ।। कोई दिशा धारा न होने से, छुट्टी, पिकनिक, मित्रों की पार्टी, सिनेमा जैसे छुटपुट उपचारों तक ही सीमित रह जाते हैं, ऐसे लोगों को भावनात्मक- धर्म समारोहपूर्वक विवाह दिवसोत्सव मनाने की बात बतलाई- समझाई जाए, तो वे इसे सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं ।। न्यूनतम खर्च में जीवन में नई दिशा का बोध कराने वाला तथा नये उल्लास का संचार कराने वाला यह संस्कार थोड़े ही प्रयास से लोकप्रिय बनाया जा सकता है

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गुरुजी मेरी सगाई 8 साल से हो रही थी अब वह सगाई टूट चुकी है और मेरी शादी कब होगी मैं बहुत चिंतित हूं मेरी उम्र 23 साल से ज्यादा हूं मेरा नाम संजय है

Sanjay Verma

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