शंख बजाने के लिए आपको ताकत की नहीं तकनीक की आवश्यकता है और ये तकनीक इतनी सरल है कि बच्चा बच्चा जानता है बस वो ये नहीं जानता कि इसी तकनीक से शंख भी बजा सकते हैं। आपको बस ये करना है.
आपको अपने दोनों होठों को बन्द करके पुर्र पुर्र की ध्वनि करनी है जैसे आप थूंक का फुहारा छोड़ रहे हों। जब आप ये सीख जाएंगे तो बस शंख को मुंह से लगाकर यही ध्वनि करनी है और बस कमाल देखिए।
1. ऐसी मान्यता है कि जिस घर में शंख होता है, वहां लक्ष्मी का वास होता है. धार्मिक ग्रंथों में शंख को लक्ष्मी का भाई बताया गया है, क्योंकि लक्ष्मी की तरह शंख भी सागर से ही उत्पन्न हुआ है. शंख की गिनती समुद्र मंथन से निकले चौदह रत्नों में होती है.
2. शंख को इसलिए भी शुभ माना गया है, क्योंकि माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु, दोनों ही अपने हाथों में इसे धारण करते हैं.
3. पूजा-पाठ में शंख बजाने से वातावरण पवित्र होता है. जहां तक इसकी आवाज जाती है, इसे सुनकर लोगों के मन में सकारात्मक विचार पैदा होते हैं. अच्छे विचारों का फल भी स्वाभाविक रूप से बेहतर ही होता है.
4. शंख के जल से शिव, लक्ष्मी आदि का अभिषेक करने से ईश्वर प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा प्राप्त होती है.
5. ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि शंख में जल रखने और इसे छिड़कने से वातावरण शुद्ध होता है.
6. शंख की आवाज लोगों को पूजा-अर्चना के लिए प्रेरित करती है. ऐसी मान्यता है कि शंख की पूजा से कामनाएं पूरी होती हैं. इससे दुष्ट आत्माएं पास नहीं फटकती हैं.
7. वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख की आवाज से वातावरण में मौजूद कई तरह के जीवाणुओं-कीटाणुओं का नाश हो जाता है. कई टेस्ट से इस तरह के नतीजे मिले हैं.
8. आयुर्वेद के मुताबिक, शंखोदक के भस्म के उपयोग से पेट की बीमारियां, पथरी, पीलिया आदि कई तरह की बीमारियां दूर होती हैं. हालांकि इसका उपयोग एक्सपर्ट वैद्य की सलाह से ही किया जाना चाहिए.
9. शंख बजाने से फेफड़े का व्यायाम होता है. पुराणों के जिक्र मिलता है कि अगर श्वास का रोगी नियमित तौर पर शंख बजाए, तो वह बीमारी से मुक्त हो सकता है.
10. शंख में रखे पानी का सेवन करने से हड्डियां मजबूत होती हैं. यह दांतों के लिए भी लाभदायक है. शंख में कैल्शियम, फास्फोरस व गंधक के गुण होने की वजह से यह फायदेमंद है.
जी हां पुरुषों की तरह स्त्रियां भी शंख बजा सकती हैं। इसमें ऐसा कोई नियम नहीं है कि पुरुष लोग ही शंख बजाएंगे और स्त्रियां नहीं।लेकिन अगर स्त्री गर्भवती है तो उस गर्भवती महिला को शंख नहीं बजाना चाहिए। क्योंकि जब हम शंख बजाते हैं तो उस समय हमारा जोर नाभि पर पड़ता है और अगर गर्भवती स्त्री शंख बजाती है तो उसके होने वाले बच्चे पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। इसीलिए गर्भवती महिलाओं को शंख बजाने की सलाह नहीं दी जाती।
शंख बजाने ने आसपास के सूक्ष्म जीवाणुओं का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचरण होता है साथ जी बजाने वाले के श्वास संबंधी बीमारियों में अच्छा होता है
1928 में बर्लिन यूनिवर्सिटी ने शंख ध्वनि का अनुसंधान करके यह सिद्ध किया कि इसकी ध्वनि कीटाणुओं को नष्ट करने कि उत्तम औषधि है।
जिन लोगों को नौकरी या कामधंधे का तनाव रहता है, उन्हें भी शंख बजाना चाहिए। शंख बजाते समय दिमाग से सारे विचार चले जाते हैं। इससे तनाव काम करने में मदद मिलती है।
शंख में रखे पानी का सेवन करने से हड्डियां मजबूत होती हैं। यह दांतों के लिए भी लाभदायक है। शंख में कैल्शियम, फास्फोरस व गंधक के गुण होने की वजह से यह फायदेमंद है।
शंख बजाने से फेफड़े का व्यायाम होता है। पुराणों के जिक्र मिलता है कि अगर श्वास का रोगी नियमित तौर पर शंख बजाए, तो वह बीमारी से मुक्त हो सकता है।
वास्तुशास्त्र के मुताबिक भी शंख में ऐसे कई गुण होते हैं, जिससे घर में पॉजिटिव एनर्जी आती है। शंख की आवाज से 'सोई हुई भूमि' जाग्रत होकर शुभ फल देती है।
बद्रीनाथ में इस पर रोक है। इसके दो कारण हैं। पहला कारण यह है कि बद्रीनाथ मंदिर बर्फ से ढका हुआ रहता है। ऐसे में शंख बजाने से इससे निकलने वाली ध्वनि बर्फ से टकरा सकती हैं। जिससे बर्फीले तूफान आने का खतरा बढ़ जाता है। परिसर में शंख न बजाए जाने का एक आध्यात्मिक कारण भी है। शास्त्रों के अनुसार एक बार मां लक्ष्मी बद्रीनाथ में बने तुलसी भवन में ध्यान कर रहीं थी। तभी भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण नामक राक्षस का वध किया था। चूंकि हिंदू धर्म में विजय पर शंख नाद करते हैं, लेकिन विष्णु जी लक्ष्मी जी का ध्यान भंग नहीं करना चाहते थे। इसी कारण उन्होंने शंख नहीं बजाया। तब से बद्रीनाथ में शंख नहीं बजाया जाता है।
भगवान् श्री कृष्ण के शंख का नाम पाञ्चजन्य था और धनुर्धारी अर्जुन के शंख का नाम देवदत्त था I भीम के शंख का नाम पौंड्रा था और महाबलशाली भीम सेन के शंख की ध्वनि के सामने बड़े से बड़े योद्धा को अपने कानों से सुनाई पड़ना बंद हो जाता था I और पांडवों में सबसे श्रेष्ठ युधिष्ठिर के शंख का नाम अनंतविजय था और वही सहदेव के शंख का नाम पुष्पक और वीर नकुल के शंख का नाम सुघोषमणि था I
1. शंख को पानी में नहीं रखना चाहिए।
2. शंख को धरती पर भी नहीं रखना चाहिए। शंख हमेशा एक साफ कपड़ा बिछाकर रखना चाहिए।
3. शंख के अंदर जल भरकर नहीं रखना चाहिए। पूजन के समय शंख में जल भरकर रखा जा सकता है। आरती के बाद इस जल का छिड़काव करने से शारीरिक व मानसिक विकारों से मुक्ति मिलता है। साथ ही, जीवन में सौभाग्य का उदय होने लगता है।
4. शंख को पूजा के स्थान पर रखते समय खुला हुआ भाग ऊपर की ओर होना चाहिए।
5. शंख को भगवान विष्णु, लक्ष्मी या बालगोपाल की मूर्ति के दाहिनी ओर रखा जाना चाहिए।
6. शंख को माता लक्ष्मी का रूप माना गया है। इसलिए शंख को पूूजन स्थान में उसी आदर के साथ पूजा जाना चाहिए। जिस आदर के साथ भगवान का पूजन किया जाता है।
7. आसानी से धन की प्राप्ति के लिए शंख को 108 चावल के दानों के साथ लाल कपड़े में लपेटकर तिजोरी में स्थापित करें।
पौराणिक रूप –
समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में एक रत्न शंख है। माता लक्ष्मी के समान शंख भी सागर से उत्पन्न हुआ है. इसलिए इसे माता लक्ष्मी का भाई भी कहा जाता है। सनातन हिन्दू धर्म में शंख को बहुत ही शुभ माना गया है,
इसका कारण यह है कि माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु
दोनों ही अपने हाथों में शंख धारण करते हैं। जन सामान्य में ऐसी धारणा है कि, जिस घर में शंख होता
है. उस घर में सुख-समृद्धि आती है। वास्तु विज्ञान भी इस तथ्य को मानता है कि शंख में ऐसी
खूबियां है. जो वास्तु संबंधी कई समस्याओं को दूर करके घर में सकारात्मक उर्जा को आकर्षित करता है जिससे घर में खुशहाली आती है। शंख की ध्वनि जहां तक पहुंचती हैं वहां तक की वायु शुद्ध और उर्जावान हो जाती है।
वास्तु विज्ञान के अनुसार सोयी हुई भूमि भी नियमित शंखनाद से जग जाती है।
भूमि के जागृत होने से रोग और कष्ट में कमी आती है तथा घर में रहने वाले लोग उन्नति की ओर बढते रहते हैं।
भगवान की पूजा में शंख बजाने के पीछे भी यह उद्देश्य होता है कि आस-पास का वातावरण शुद्ध पवित्र रहे।
शंख के प्रकार –
शंख मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं - दक्षिणावर्ती, मध्यावर्ती और वामावर्ती। इनमें दक्षिणावर्ती शंख दाईं तरफ से खुलता है,मध्यावर्ती बीच से और वामावर्ती बाईं तरफ से खुलता है। मध्यावर्ती शंख बहुत ही कम मिलते हैं। शास्त्रों में इसे अति चमत्कारिक बताया गया है। इन तीन प्रकार के शंखों के अलावा और भी अनेक प्रकार के शंख पाए जाते हैं जैसे लक्ष्मी शंख,गरुड़ शंख,मणिपुष्पक शंख,गोमुखी शंख,देव शंख,राक्षस शंख,विष्णु शंख,चक्र शंख,पौंड्र शंख,सुघोष शंख,शनि शंख, राहु एवं केतु शंख।
शंख से वास्तु दोष मुक्ति का तरीका –
शंख किसी भी दिन घर में लाकर पूजा स्थल में रखा जा सकता है। लेकिन शुभ मुहूर्त विशेष तौर पर होली,रामनवमी,जन्माष्टमी,दुर्गा पूजा, दीपावली के दिन अथवा रवि पुष्य योग या गुरू पुष्य योग में इसे पूजा स्थल में रखकर इसकी धूप-दीप से पूजा की जाए घर में वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है। शंख में गाय का दूध रखकर इसका छिड़काव घर में किया जाए तो इससे भी सकारात्मक उर्जा का संचार होता है।
शंख का वैज्ञानिक महत्व –
भारतीय संस्कृति में शंख को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। माना जाता है कि समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में से एक शंख भी था।
अथर्ववेदके अनुसार,शंख से राक्षसों का नाश होता है- ''शंखेन हत्वारक्षांसि।'' भागवत पुराण में भी शंख का उल्लेख हुआ है।
शंख में ओम ध्वनि प्रति ध्वनितहोती है,इसलिए ओम से ही वेद बने और वेद से ज्ञान का प्रसार हुआ। पुराणों और शास्त्रों में शंख ध्वनि को कल्याणकारी कहा गया है। इसकी ध्वनि विजय का मार्ग प्रशस्त करती है। शंख का महत्व धार्मिक दृष्टि से ही नहीं,वैज्ञानिक रूप से भी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके प्रभाव से सूर्य की हानिकारक किरणें बाधक होती हैं। इसलिए सुबह और शाम शंख ध्वनि करने का विधान सार्थक है।
जाने-माने वैज्ञानिक डॉ. जगदीश चंद्र बसु के अनुसार, इसकी ध्वनि जहां तक जाती है,वहां तक व्याप्त बीमारियों के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इससे पर्यावरण शुद्ध हो जाता है। शंख में गंधक,फास्फोरस और कैल्शियम जैसे उपयोगी पदार्थ मौजूद होते हैं। इससे इसमें मौजूद जल सुवासित और रोगाणु रहित हो जाता है। इसीलिए शास्त्रों में इसे महाऔषधि माना जाता है। पूजा,यज्ञ एवं अन्य विशिष्ट अवसरों पर शंखनाद हमारी परंपरा में था। क्योंकि शंख से निकलने वाली ध्वनितरंगों में हानिकारक वायरस को नष्ट करने की अद्भुत क्षमता होती है। 1928 में बर्लिन विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने शंख ध्वनि पर अनुसंधान कर इस बात को प्रमाणित किया था। दरअसल,शंखनाद करने के पीछे मूलभावना यही थी कि इससे शरीर निरोगी हो जाता है। घर में शंख रखना और उसे बजाना वास्तु दोष को भी खत्म कर देता है। यह भारतीय संस्कृति की अनुपम धरोहर है।
मंदिरों में नियमित रूप से और बहुत से घरों में पूजा- पाठ,धार्मिक अनुष्ठान, व्रत,कथाएं, जन्मोत्सव के अवसरों पर शंख बजाना शुभ माना जाता है। ज्योतिषाचार्यो के अनुसार शंख बजाने से आसुरी शक्तियां घर के भीतर प्रवेश नहीं कर पाती।
समुद्र मंथन में मिले रत्नों में 6वां —
समुद्र मंथन के समय मिले 14 रत्नों में छठवां रत्न शंख था। शंखनाद से निकली ध्वनि में अ-उ-म् (ओम्) अथवा ’ओम्’ शब्द उद्धोषित होता है जहां तक ‘ओम्’ का नाद पहुंचता है वहां तक नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है।
देवतुल्य है शंख —
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है। इसके मध्य में वरुण,पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा व सरस्वती का निवास है। शंख से शिवलिंग,कृष्ण या लक्ष्मी विग्रह पर जल या पंचामृत अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न होते हैं। पांचजन्य व विष्णु शंख को दुकान, कार्यालय,फैक्टरी में
स्थापित करने से व्यवसाय में लाभ होता है।
शंख की उत्पत्ति —
हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार शंख की उत्पत्ति सृष्टी आत्मा से,आत्मा आकाश से,आकाश वायु से,वायु अग्रि से,आग जल से और जल पृथ्वी से उत्पन्न हुआ है और इन सभी तत्वों से मिलकर शंख की उत्पत्ति मानी गई है। वैसे शंख समुद्र में पाए जाने वाले एक प्रकार के घोंघे का खोल है,जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए बनाता है।
पाप नाशक —
शंख को सनातन धर्म का प्रतीक माना जाता है। यह निधि का प्रतीक है। इसे घर के पूजास्थल में रखने से अरिष्टों एवं अनिष्टों का नाश होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है। स्वर्गलोक में अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का महत्वपूर्ण स्थान है। माना जाता है कि शंख का स्पर्श पाकर जल गंगाजल के समान पवित्र हो जाता है। शंख में जल भरकर ओम् नमोनारायण का उच्चारण करते हुए भगवान को स्नान कराने से पापों का नाश होता है। शंख नाद का प्रतीक है। नाद जगत में आदि से अंत तक व्याप्त है। सृष्टि का आरंभ भी नाद से होता है और विलय भी उसी में होता है।
स्वास्थ्य लाभ—
— शंख बजाना स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभदायक है। इससे पूरक,कुम्भक और रेचक जैसी प्राणायाम क्रियाएं एक साथ हो जाती हैं।
— सांस लेने से पूरक, सांस रोकने से कुम्भक और सांस छोड़ने की क्रिया से रेचक सम्पन्न हो जाती हैं।
— हृदय रोग,रक्तदाब,सांस सम्बन्धी रोग,मन्दाग्नि आदि में मात्र शंख बजाने से पर्याप्त लाभ मिलता है।
— यदि कोई बोलने में असमर्थ है या उसे हकलेपन का दोष है तो शंख बजाने से ये दोष दूर होते हैं। इससे फेफड़ों के रोग भी दूर होते हैं :- जैसे दमा, कास प्लीहा यकृत और इन्फ्लूएन्जा रोगों में शंख ध्वनि फायदेमंद है।
— अगर आपको खांसी,दमा,पीलिया,ब्लडप्रेशर या दिल से संबंधित मामूली से लेकर गंभीर बीमारी है तो इससे छुटकारा पाने का एक सरल-सा उपाय है –
— शंख बजाइए और रोगों से छुटकारा पाइए।
— शंखनाद से आपके आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का नाश तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। शंख से निकलने वाली ध्वनि जहां तक जाती है वहां तक बीमारियों के कीटाणुओं का नाश हो जाता है।
— शंखनाद से सकारात्मक ऊर्जा का सर्जन होता है जिससे आत्मबल में वृद्धि होती है। शंख में प्राकृतिक कैल्शियम,गंधक और फास्फोरस की भरपूर मात्रा होती है। प्रतिदिन शंख फूंकने वाले को गले और फेफड़ों के रोग नहीं होते। शंख से मुख के तमाम रोगों का नाश होता है। शंख बजाने से चेहरे,श्वसन तंत्र, श्रवण तंत्र तथा फेफड़ों का व्यायाम होता है। शंख वादन से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
शंख के प्रकार —
ये कई प्रकार के होते हैं और सबकी विशेषता एवं पूजन पद्धति भिन्न-भिन्न है। उच्च श्रेणी के श्रेष्ठ शंख कैलाश मानसरोवर,मालद्व ीप,लक्षद्वीप,कोरामंडल द्वीप समूह, श्रीलंका और भारत में पाए जाते हैं। दक्षिणावृत्ति शंख (दाहिने हाथ से पकड़ा जाता है),मध्यावृत्ति शंख (इसका मुंह बीच में खुलता है),वामावृत्ति शंख (यह बाएं हाथ से पकड़ा जाता है)। इनके अलावा लक्ष्मी शंख,गणोश शंख,गोमुखी शंख,कामधेनु शंख,विष्णु शंख, देवदत्त शंख,चक्र शंख,पौंड्र शंख,वीणा शंख,सुघोष शंख,गरुड़ शंख,मणिपुष्पक शंख,राक्षस शंख,शनि शंख, राहु शंख, केतु शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख आदि होते हैं। इनकी दुर्लभता एवं चमत्कारिक गुणों के कारण ये अधिक मूल्यवान होते हैं।
विजय घोष का प्रतीक —
शंख को विजय घोष का प्रतीक माना जाता है। कार्य के आरम्भ करने के समय शंख बजाना शुभता का प्रतीक है। इसकी नाद को सुनने वाले को सहज ही ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव हो जाता है।
वैज्ञानिक पहलू —
शंख ध्वनि से सूर्य की किरणे बाधित होती हैं। अत: प्रात: व सायंकाल में ही शंख ध्वनि करने का विधान है। शंखोदक भस्म से पेट की बीमारियां,पीलिया,कास प्लीहा यकृत,पथरी आदि रोग ठीक हो जाते हैं। ऋषि श्रृंग के अनुसार बच्चों के शरीर पर छोटे-छोटे शंख बांधने व शंख जल पिलाने से वाणी-दोष दूर हाते हैं। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि मूक व श्वास रोगी हमेशा शंख बजाए तो बोलने की शक्ति पा सकते हैं। आयुर्वेदाचार्य डा.विनोद वर्मा के अनुसार हकलाने वाले यदि नित्य शंख-जल पीएं तो वे ठीक हो जाएंगे। शंख जल स्वास्थ्य,हड्डियों,दांतों के लिए लाभदायक है। इसमें गंधक, फास्फोरस व कैल्शियम होते हैं। संगीत सम्राट तानसेन ने भी अपने आरंभिक दौर में शंख बजाकर ही गायन शक्तिप्राप्त की थी। अथर्ववेद के अनुसार, शंख में राक्षसों का नाश करने की भी शक्ति होती है।
क्या रहस्य है शंख बजाने का ?
— मंदिर में आरती के समय शंख बजते सभी ने सुना होगा परंतु शंख क्यों बजाते हैं ? इसके पीछे क्या कारण है यह बहुत कम ही लोग जानते हैं। शंख बजाने के पीछे धार्मिक कारण तो है साथ ही इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है और शंख बजाने वाले व्यक्ति को स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है।
— शंख की उत्पत्ति कैसे हुई ? इस संबंध में हिन्दू धर्म ग्रंथ कहते हैं सृष्टी आत्मा से,आत्मा आकाश से,आकाश वायु से,वायु अग्रि से,आग जल से और जल पृथ्वी से उत्पन्न हुआ है और इन सभी तत्व से मिलकर शंख की उत्पत्ति मानी जाती है।
— शंख की पवित्रता और महत्व को देखते हुए हमारे यहां सुबह और शाम शंख बजाने की परंपरा आरंभ की गई है। शंख बजाने का स्वास्थ्य लाभ यह है कि यदि कोई बोलने में असमर्थ है या उसे हकलेपन का दोष है तो शंख बजाने से ये दोष दूर होते हैं। शंख बजाने से कई तरह के फेफड़ों के रोग दूर होते हैं जैसे दमा, कास प्लीहा यकृत और इन्फ्लून्जा आदि रोगों में शंख ध्वनि फायदा पहुंचाती है।
— शंख के जल से शालीग्राम को स्नान कराएं और फिर उस जल को यदि गर्भवती स्त्री को पिलाया जाए तो पैदा होने वाला शिशु पूरी तरह स्वस्थ होता है। साथ ही बच्चा कभी मूक या हकला नहीं होता।
— यदि शंखों में भी विशेष शंख जिसे दक्षिणावर्ती शंख कहते हैं इस शंख में दूध भरकर शालीग्राम का अभिषेक करें। फिर इस दूध को निरूसंतान महिला को पिलाएं। इससे उसे शीघ्र ही संतान का सुख मिलता है।
— गोरक्षासंहिता,विश्वामित्र संहिता,पुलस्त्यसंहिता आदि ग्रंथों में दक्षिणावर्ती शंख को आयुर्वद्धकऔर समृद्धि दायक कहा गया है। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार,शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूपहै। इसके मध्य में वरुण,पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है।
— शंख बजाने से दमा,अस्थमा,क्षय जैसे जटिल रोगों का प्रभाव काफी हद तक कम हो सकता है। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि शंख बजाने से सांस की अच्छी एक्सरसाइज हो जाती है। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार,शंख में जल भरकर रखने और उस जल से पूजन सामग्री धोने और घर में छिडकने से वातावरण शुद्ध रहता है।
— तानसेनने अपने आरंभिक दौर में शंख बजाकर ही गायन शक्ति प्राप्त की थी।
— अथर्ववेदके चतुर्थ अध्याय में शंखमणिसूक्त में शंख की महत्ता वर्णित है। भागवत पुराण के अनुसार,संदीपन ऋषि आश्रम में श्रीकृष्ण ने शिक्षा पूर्ण होने पर उनसे गुरु दक्षिणा लेने का आग्रह किया। तब ऋषि ने उनसे कहा कि समुद्र में डूबे मेरे पुत्र को ले आओ। कृष्ण ने समुद्र तट पर शंखासुरको मार गिराया। उसका खोल (शंख) शेष रह गया।
— माना जाता है कि उसी से शंख की उत्पत्ति हुई। पांचजन्य शंख वही था। शंख से शिवलिंग,कृष्ण या लक्ष्मी विग्रह पर जल या पंचामृत अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न होते हैं। शंख की ध्वनि से भक्तों को पूजा-अर्चना के समय की सूचना मिलती है। आरती के समापन के बाद इसकी ध्वनि से मन को शांति मिलती है।
— कल्याणकारी शंख दैनिक जीवन में दिनचर्या को कुछ समय के लिए विराम देकर मौन रूप से देव अर्चना के लिए प्रेरित करता है। यह भारतीय सनातन संस्कृति की धरोहर है।
— शंख की पूजा इस मंत्र के साथ की जाती है
त्वं पुरा सागरोत्पन्न:विष्णुनाविघृत:करे
देवैश्चपूजित: सर्वथैपाञ्चजन्यनमोऽस्तुते।
प्रत्यंचा सनातन संस्कृति
जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,
जयति पुण्य भूमि भारत,,
सदा सुमंगल
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
जय भवानी
जय श्री राम
पंडित ओम प्रकाश शर्मा ज्योतिषाचार्य उज्जैन महाकाल वन कार्तिक चोक उज्जैन
मो.9977742288
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