कालसर्प दोष / योग - कालसर्प उपाय
प्रचलित परिभाषा के अनुसार जब जन्म कुंडली में सम्पूर्ण ग्रह राहु और केतु ग्रह के बीच स्थित हों तो ऐसी स्थित को ज्योतिषी कालसर्प दोष का नाम देते हैं। वर्तमान में इस दोष की चर्चा ज्योतिषियों के मध्य जोरों पर हैं। किसी भी जातक के जीवन में कोई भी परेशानी हो और उसकी कुण्डली में यह योग या दोष हो तो अन्य पहलुओं का परीक्षण किए बगैर बहुधा ज्योतिषी यह निष्कर्ष सुना देते हैं कि संबंधित जातक पर आने वाली उक्त प्रकार की परेशानियां कालसर्प योग के कारण हो रही हैं। परंतु वास्तविकता यह है कि यदि कुण्डली में अन्य ग्रहों की स्थितियां ठीक हों तो अकेला कालसर्प दोष नुकसानदायी नहीं होता। बल्कि वह अन्य ग्रहों के शुभफलदायी होने पर यह दोष योग की तरह काम करता है और उन्नति में सहायक होता है। वहीं अन्य ग्रहों के अशुभफलदायी होने पर यह अशुभफलों में वृद्धि करता है। अत: मात्र कालसर्प दोष का नाम सुनकर भयभीत होना ठीक नहीं है बल्कि इसका ज्योतिषीय विश्लेषण करवाकर उससे मिलने वाले प्रभावों और दुष्प्रभावों की जानकारी लेकर उचित उपाय करना श्रेयष्कर होगा। इस मामले में सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात यह है कि इस योग का असर अलग-अलग जातकों पर अलग-अलग प्रकार से देखने को मिलता है। क्योंकि इसका असर किस भाव में कौन सी राशि स्थित है और उसमें कौन-कौन ग्रह बैठे हैं और उनका बलाबल कितना है, इन विन्दुओं के आधार पर पडता है। साथ ही कालसर्प दोष या योग किन-किन भावों के मध्य बन रहा है, इसके अनुसार भी इस दोष/योग का असर पडता है। भाव स्थिति के अनुसार इस योग या दोष को बारह प्रकार का माना गया है।
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