सामवेदकी ध्वनि सुनाई दे रही हो तब ऋग्वेद व यजुर्वेदको नहीं पढ़ना चाहिए, यह शास्त्रीय सिद्धांत है।
परंतु ऐसा क्यों है???
*निम्न कारणोंमेंसे कौनसा समुचित है???*
1 सामवेदकी मधुर ध्वनि शमें व्यवधान न हो।
2 ऋग्वेद व यजुर्वेदका सामवेदसे विरोध है।
3 सभी वेदोंमें सामवेद श्रेष्ठ है, उसके सामने अन्य वेदोंका बोलना ठीक नहीं है।
4 सामवेदकी ही ध्वनि अपवित्र है।
5 सामवेद स्वतंत्र है अन्योंके बोलने पर उसका अपमान होता है।
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यज्ञादि कर्मोंमें आमकी समिधासे हवन नहीं करना चाहिए।
परंतु लोगोंको न जाने कहांसे यह भ्रम हो गया है कि हवनमें आमकी समिधा अत्यंत उपयोगी है।
*#प्रमाण*-
*#यज्ञीयवृक्ष*-
*1 पलाशफल्गुन्यग्रोधाः प्लक्षाश्वत्थविकंकिताः।*
*उदुंबरस्तथा बिल्वश्चंदनो यज्ञियाश्च ये।।*
*सरलो देवदारुश्च शालश्च खदिरस्तथा।*
*समिदर्थे प्रशस्ताः स्युरेते वृक्षा विशेषतः।।*
(#आह्निकसूत्रावल्यां_वायुपुराणे)
*2 शमीपलाशन्यग्रोधप्लक्षवैकङ्कितोद्भवाः।*
*वैतसौदुंबरौ बिल्वश्चंदनः सरलस्तथा।।*
*शालश्च देवदारुश्च खदिरश्चेति याज्ञिकाः।।*
(#संस्कारभास्करे_ब्रह्मपुराणे)
*#अर्थ*-
1पलाश /ढाक/छौला
2फल्गु
3वट
4पाकर
5पीपल
6विकंकत /कठेर
7गूलर
8बेल
9चंदन
10सरल
11देवदारू
12शाल
13खैर
14शमी
15बेंत
उपर्युक्त ये सभी वृक्ष यज्ञीय हैं, यज्ञोंमें इनका इद्ध्म (काष्ठ) तथा इनकी समिधाओंका उपयोग करना चाहिए।
शमी व बेल आदि वृक्ष कांँटेदार होने पर भी वचनबलात् यज्ञमें ग्राह्य हैं।
*परंतु इन वृक्षोंमें आमका नाम नहीं है।*
*#यज्ञीयवृक्षोंके_न_मिलनेपर*-
यदि उपर्युक्त वृक्षोंकी समिधा संभव न होसके तो, शास्त्रोंमें बताया गया है कि, और सभी वृक्षोंसे भी हवन कर सकते हैं-
*एतेषामप्यलाभे तु सर्वेषामेव यज्ञियाः।।*
(#यम:,#शौनकश्च)
*तदलाभे सर्ववनस्पतीनाम्*
(#आह्निकसूत्रावल्याम्)
परंतु निषिद्ध वृक्षोंको छोड़ करके अन्य सभी वृक्ष ग्राह्य हैं।
तो निषिद्ध वृक्ष कौन से हैं देखिए-
*#हवनमें_निषिद्धवृक्ष*-
*#तिन्दुकधवलाम्रनिम्बराजवृक्षशाल्मल्यरत्नकपित्थकोविदारबिभीतकश्लेष्मातकसर्वकण्टकवृक्षविवर्जितम्।।*
(#आह्निकसूत्रावल्याम्)
*#अर्थ*-
1 तेंदू
2 धौ/धव
*3 #आम*
4 नीम
5 राजवृक्ष
6 सैमर
7 रत्न
8 कैंथ
9 कचनार
10बहेड़ा
11लभेरा/लिसोडा़ और
12सभी प्रकारके कांटेदार वृक्ष यज्ञमें वर्जित है।
*#विशेष*-
*1 #उत्तम_यज्ञीयवृक्ष*- शास्त्रोंमें जिन वृक्षोंका ग्रहण किया गया है, उन सभी वृक्षोंका प्रयोग सर्वश्रेष्ठ है।
*2 #मध्यम_यज्ञीयवृक्ष*- शास्त्रोंमें जिन वृक्षोंका ग्रहण भी नहीं किया गया है, और ना ही जिनका निषेध किया गया है ऐसे सभी वृक्षोंका उपयोग मध्यम है।
*3 #अधम_यज्ञीयवृक्ष*-
जिन वृक्षोंका शास्त्रोंमें निषेध किया गया है, उन वृक्षोंको यज्ञमें कभी भी उपयोगमें नहीं लाना चाहिए,ये सभी वृक्ष यज्ञमें अधम/त्याज्य हैं।
#यज्ञीयवृक्षका_मतलब है— जिन वृक्षोंका यज्ञमें हवन/ पूजन संबंधित सभी कार्योंमें पत्र ,पुष्प ,समिधा आदिका ग्रहण करना शास्त्रोंमें विहित बताया गया है ।
और निषिद्ध वृक्षोंका ये सब त्यागना चाहिए।
*जहां यज्ञीयवृक्ष बताए गए हैं वहां आमके वृक्षका ग्रहण नहीं किया गया है*
*और जहां निषेध वृक्षोंकी गणना है वहां आमकी गणना है। इससे आप लोग विचार कर सकते हैं।*
आमकी समिधा तो यज्ञकर्ममें सर्वथा त्याज्य है, जिसका लोग जानबूझकरके संयोग करते हैं, कितनी दुखद और विचारणीय बात है।
*#नोट*- इस लेखमें शुद्ध वैदिक एवं स्मार्त यज्ञोंमें शान्तिक , पौष्टिक सात्विक हवनकी विधिका उल्लेख किया गया है।
तांत्रिक विधिमें और उसमें भी षडभिचार - मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटनादिमें तो बहुत ऐसी चीजोंका हवन लिखा हुआ है जिनकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते
#जैसे- मिर्चीसे, लोहेकी कीलोंसे, विषादिसे भी हवन करना लिखा हुआ है।
तो वहां कई निषिद्ध वृक्षोंका भी ग्रहण हो सकता है, उसकी यहां चर्चा नहीं है।
*#होमीयसमिल्लक्षण*-
*प्रादेशमात्राः सशिखाः सवल्काश्च पलासिनीः।*
*समिधः कल्पयेत् प्राज्ञः सर्व्वकर्म्मसु सर्व्वदा॥*
*नाङ्गुष्ठादधिका न्यूना समित् स्थूलतया क्वचित्।*
*न निर्म्मुक्तत्वचा चैव न सकीटा न पाटिता॥*
*प्रादेशात् नाधिका नोना न तथा स्याद्विशाखिका।*
*न सपत्रा न निर्वीर्य्या होमेषु च विजानता ॥*
(#छन्दोगपरिशिष्टम्)
#निषिद्ध_समिधा-
*विशीर्णा विदला ह्रस्वा वक्राः स्थूला द्विधाकृताः।*
*कृमिदष्टाश्च दीर्घाश्च समिधो नैव कारयेत्॥*
(#संस्कारतत्त्वम्)
#अशास्त्रीय_समिधाके_दुष्परिणाम-
*विशीर्णायुःक्षयं कुर्य्याद्बिदला पुत्त्रनाशिनी।*
*ह्रस्वा नाशयते पत्नीं वक्रा बन्धुविनाशिनी॥*
*कृमिदष्टा रोगकरी विद्वेषकरणी द्विधा।*
*पशून् मारयते दीर्घा स्थूला चार्थविनाशिनी॥*
(#इतितन्त्रम्)
#नवग्रहसमिधा -
*अर्कः पलाशः खदिरस्त्वपामार्गोऽथ पिप्पलः।*
*उदुम्बरः शमी दूर्व्वाः कुशाश्च समिधः क्रमात्॥*
(#संस्कारतत्त्वे_याज्ञवल्क्यवचनम्)
नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव।
राजेश राजौरिया वैदिक वृन्दावन
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